रविवार, 1 मार्च 2009

ये कहाँ आ गए हम ?

आज सोचनेसे इतनी मजबूर हूँ,कि देर रात तक अपने काम निपटाती रही और सवेरा हो रहा है..आसमान मे पूरबा अपने सूरजकी आहटसे रक्तिम हुई जा रही है...थोडीही देरमे पँछी जागने लगेंगे..एक नए दिनकी शुरुआत होगी..मेरे दो दिनों के बीछ कोई फासलाही नही रहा है...

लोग कहते हैं, यातायात के साधनों से दुनिया छोटी होती जा रही है..संपर्क करनेके कितने तरीक़े ईजाद हो गए हैं....नेटपे बैठो, बात करते, करते अगलेको देखभी लो...बस छू नही सकते....तरस तो शायद मेरे जैसे, इसी स्पर्शके लिए जाते हैं !काश! अपनी बिटियाको गले लगा सकती....काश, उसे छू सकती....!कैसे तसल्ली कर लूँ...कैसे अपने पागल मनको समझाऊँ???

पहले परदेस से एक ख़त आनेमे कितने हफ्ते बीत जाते...कईयों के पास फ़ोन भी नही होते...गर होते तो प्रथम कॉल बुक करो फ़िर बातचीत....उसके बाद STD का ज़माना आ गया...घरसेही लगा लो...!और आगे चले तो आईएसडी का ज़माना शुरू हो गया...लो औरभी आसान...फिर इंटरनेट ने और मोबाईल फोन्सनेतो सीधे अपनी ज़िंदगी बदल दी....झटपट संपर्क...जब हमारा दिल करे ,मेसेज छोड़ दें..जब अगलेको फुरसत हो वो छोड़ देगा या फ़ोन कर देगा...! कितना नीरस लगने लगा ये सब!!

इन सबमे वो पुरानावाला अपनापन कहाँ गया? वो डाकियेका इंतज़ार, वो तन्हाई तलाशते हुए अपने किसी प्रियका ख़त पढ़ना...अगला ख़त आनेतक, उस खतको ताकियेके नीचे रखे बार, बार पढ़ना...और उसमे छिपी गुलाबकी पंखुडी या जूही,रातरानीका फूल सँभाल के अपनी किसी किताबमे रख देना....

जानते हुए कि, जब ईमेल भेजी जा रही है, तब कोई बीच हीमेसे दूसरा फोन आ जाता है.....
"बस कुछ हे देरमे लौट आएँगे," कह नेट परसे उठ जाना...फिर टूटा हुआ सिलसिला...और कई बार, " सेव" न किया हो तो पूरा ख़त गायब!!"सर्वर डाउन..cannot डिसप्ले the पेज...!
नेट फिरसे तुंरत कनेक्ट हो जाए तो ग़नीमत, वरना आधी बात हम भूल जाते हैं !

यही बात फोनके साथ....! बेहतर संपर्क के लिए आप दो लैंड लाइन रख लें...हर किसीका अपना अलग सेल हो...एक बस नही तो दो हों...! और मज़ेदार बात ये कि, हमारे जैसे फोन करनेवाले, एक सेल व्यस्त आता है तो तुंरत दूसरेपे नम्बर घुमा देते हैं...! ये नही सोचते कि गर एक नंबर व्यस्त है, इसका मतलब वो व्यक्ती किसीसे बात कर रहा होगा...और अगलाभी ऐसा नही करता की, एक फोनपे बात करते समय दूसरेको "silent" पे रख दे...!या तो उस पहले व्यक्ती से कह देना पड़ता है कि, बादमे बात करेंगे, या हमें सुनना पड़ता है कि, हमसे वे अपनेआप संपर्क कर लेंगे...! हम दिलमे बुरा मान जाते हैं, कि देखिये जनाबको जब हमारी ज़रूरत थी तो दस फोन लगाये...आज हमने फोन किया, तो कह दिया बादमे बात करेंगे! आपसी संबंधों मे ऐसी बातें कितनी एहमियत रखती हैं...!

सोचने लगती हूँ,तो महसूस होता है, वो ख़तोकिताबत का ज़मानाही बेहतर था....दुनियाँ तो व्यवसाय के खातिरही सही, छोटी हो रही है, लेकिन आपसी रिश्तों-संबंधों मे दूरियाँ बढ़ती नज़र आ रही हैं ! पत्नी फोन करे तो अमरीकामे बैठे पतीको फोन बिल नज़र आने लगता है...पती ना करे तो पत्नी को लगता है, कमाल है, हर बार मैही फोन करती हूँ, कभी वो क्यों नही करता??

वो आत्मीय भावना जो अपने हाथोसे लिखे खतों मे महसूस होती वो गायब...आप अपने पतीके साथ कारमे सफर कर रहे हैं...खुदका मोबाइल तो घर छोड़ रखा है...हम तरस रहे होते हैं कुछ अन्तरंग , आत्मीय बातें कहने सुन नेके लिए, लेकिन पतिदेव मशगूल हैं, अपने sms पढ्नेमे या उन्हें reply करनेमे...कहेंगे," कम्युनिकेशन का क्या कमाल है..मानो दुनिया मुट्ठी मे आ गयी हो..अमरीकासे शेर भेज रहा है, श्रीरतन...!"

हम खामोश...हाँ,मे हाँ मिलाते हुए...कितना कुछ कहना था...सोचा घरमे तो वैसेभी इन्हें मोहलत नही मिलती...एक दिन हँसते, हँसते कह दिया.."हाँ सचमे कितना कमाल है..लेकिन कई बार लगता है कम्युनिकेशन से ज़्यादा मिस कम्युनिकेशन होता है...!
साथ होती हूँ तो मै अपना सेल घर पे छोड़ देती हूँ, कि आपसे बातचीत कर पाऊँगी....देखती हूँ, आप सात समंदर परे बैठे व्यक्तीसे बात कर लेते हैं...बगलमे बैठी पत्नीको आपसे appointmnet लेनी पड़ती है, इसके पहले के बीवी मुँह खोले ,सेल बोलने लगता है.......!"

बस मार ली हमने अपने पैरोंपे कुल्हाडी..आ बैल मुझे मार...!
हो गया ख़त्म रूमानी चाँदनी रातका नशीला आनंद ...जब अपने पतीका हाथ हौलेसे पकड़, निशब्द्तासे बोहोत कुछ कह देती....

कई बार अपने बच्चों का बचपन याद आ जाता....खासकर उस समय जब उन्हीं जगहों पेसे गुज़रते, जहाँ कभी अपने बच्चों को गोदीमे उठाये चली थी....या चाहे कारसे गुज़री थी....जब तुतलाते हुए मेरे किसी नन्हें मुन्नेने कुछ भोली-सी बात कह दी थी....
कभी इनके कामके बारेमे पूछना चाहती...

ऐसी कितनीही शामें गुज़र गयीं......अनकही बातें मनमे दबके रह गयीं..

मैंने खिडकीके बाहर देखना शुरू कर दिया.....मुम्बईमे मरीन ड्राईव परसे गाडी गुज़र रही थी...समंदरके किनारे बनी दीवारपे कितनेही जोड़े एकदूसरेका हाथ थामे बैठे थे ...कोई बात नही...फिर कभी...मैंने अपने आपको समझा लिया...

नेटकी सुविधाने या मोबाइल्की सुविधाने दुनिया तो छोटी कर दी, पर आपसी रिश्तों मे कोसों की दूरी.....
ऐसी दूरियाँ, जिस कारन बडेही खूबसूरत रिश्ते टूट गए....खासकर जब हम इन सुविधाओं के इतने आदि हो जाते हैं कि, जब ये उपलब्ध नही होती, उसी दोस्तसे नाराज़ हो बैठते हैं...ये सोंच के कि उसीने संपर्क नही किया..कितना बेज़िम्मेदार हो गया है...ये नही सोचते कि उसकीभी कोई मजबूरी रही होगी...

गर किसीका sms या फोन न आए तो असलमे हमारी पहली प्रतिक्रया होनी चाहिए, सब कुछ कुशल मंगल तो हैना....एकदमसे जजमेंटल होनेसे तो ठंडे दिमागसे सोचना चाहिए कि ज़रूर उस व्यक्तीके साथ कुछ ऐसा घटा होगा, जो कि वो संपर्क नही कर पाया....

जब मोबाइल फोन बस शुरुही हुए थे, तब उनपे ग़लत नंबर लग जाना, या फोन कनेक्ट ही ना होना ये सब नही होता था...एक मोबाइल फोन होना एक स्टेटस सिम्बल भी हो गया था...केवल सुविधा नही!!
और आज अनुभव कर रही हूँ कि, संपर्क के बदले,मोबाइल, ग़लत फेहमियों का अम्बारभी खड़ा कर रहा है....हमें लगता है, अगलेको sms तो मिलही गया होगा....मिस कॉल भी मिल गया होगा...
अगला सोचता है कि, इसने मुझसे संपर्क करना ज़रूरीही नही समझा....इधर हम राह तकते हैं, और मनही मन तनावग्रस्त हो जाते हैं...हमने फोन किया, sms किया, अगला इस ओर गौर क्यों नही कर रहा?? ऐसीभी क्या व्यस्तता कि एक sms भी नही कर सकता?

इसके मैंने ऐसे परिणाम भुगतते हुए लोगोंको देखा कि, ये लेख लिखनेपे मजबूर हो गयी.....क्या हो गया हमारे आपसी विश्वासको ?उतनाही ज़रिया काफ़ी है?क्या हमारा विश्वास का साधन केवल एक गजेट मात्र है?वही एक ज़रिया है जो हम अपना सकते हैं? जो बरसोंके संबन्धको चंद पलों मे ख़त्म कर देता है? जो कभी सहारा लगा था दूरियाँ कम करनेका वो इतनी दीवारें खडी कर सकता है ?

क्या हम आगसे खेल रहे हैं? क्या हमारे दिलो दिमाग़ इस बदलाव के ज़बरदस्त वेगको अपनानेमे समर्थ हैं? कहाँ है गलती? और कहीँ नहीँ....हमारी समझदारीमे गलती है...आग बुरी नही, आगसे खेलना बुरा है....आगको अपना दिमाग़ नही होता...वैसेही इस उपकरण को अपना कोई दिमाग़, अपना कोई अस्तित्व नही....उसके उपभोगता से जो अलग हो....दुनियाँ मे हर दिन नयी चीज़ें ईजाद होंगी....हमें अपने क़दम सोच समझके उठाने हैं....वरना जो हमारे इस्तेमालके लिए बनी हैं, हम उनके ग़लत इस्तेमाल का शिकार होते रहेंगे....उनपे हदसे अधिक विश्वास रखनेका शिकार....

क्रमशः
अगली पोस्ट मे मैंने देखे बडेही दुखदायी परिणामों के बारेमे लिखूँगी....ये वाक़या किसीकेभी साथ घट सकता है.....सोचती हूँ, हम कितनी सतर्कता से इस वेगको झेल रहे हैं??ऐसी राहोंमे घटनेवाले अपघात हमें नज़र आते हैं??
वंदन और निम्मीको कुछभी अंदेसा था??हमारी कार २०० km की रफ्तारसे चल सकती है तो क्या उस वेगके क़ाबिल हमारे रास्ते हैं?क्या हमारी ज़िंदगी एक ऐसीही राह है, जहाँ हम संभल के गुज़र नही रहे?क्या हुआ उस शाम?
कौनसी ख़बर मेरे कानोंसे टकराई, जिसने मुझे हिलाके रख दिया? ना वंदन से संपर्क हो रहा था, ना निम्मीसे....किस क़दर असह्य लग रहा था........उफ़!!कितना असहाय महसूस कर रही थी....