शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2009
बोले तो कौनसी बोली? ९) ये मैंने क्या सुना?
ये तुमने क्या कहा?
ये मैंने क्या सुना?
मेरे विचार से 'बोले तू कौनसी बोली' इस शीर्षक के तहत जो भी लिखा, उसका यही शीर्षक होना चाहिए था!
मेरे दादाजी के फुफेरे भाई महाराष्ट्र के राज्यपाल नियुक्त किए गए थे। उसके पूर्व वे सेना मे एयर चीफ मार्शल थे....इद्रीस हसन लतीफ़...बात उस समय की है...बरसों पहले की....
जिस महिला की तसवीर आप दाहिनी ओर देख रहे हैं, ( महाराष्ट्रियन तरीकेसे साडी पहने हुए), उनका और हमारे परिवार का सालों का दोस्ताना रिश्ता रहा...बेहद क़रीब...उनकी ४थी ,ततः आखरी औलाद केवल २ साल की थी तब इनके पती जो आर्मी मे डॉक्टर थे, गुज़र गए। ४ बेटोंको इन्हों ने पढाया लिखाया। उनमे से दो डॉक्टर बने।
रिश्ता और अधिक नज़दीकियों मे तब्दील हुआ जब मेरी दादी ने इन्हें रक्त दान करके इनकी जान बचाई...दादी को इसमे कुछ ख़ास नही लगा,लेकिन ये महिला, जिन्हें हम 'आजी' मतलब दादी कहते थे, ता-उम्र शुक्र गुजार रहीं...४ बेटों की माँ का अंत मे क्या हश्र हुआ ये अलग कहानी बन जायेगी..खैर!
दादीजी ने इन्हें कई हुनर और हस्तकलाएँ सिखाईं , जिससे ये थोड़ा बहुत अपने लिए कमा भी लेती थीं। जब बच्चे बड़े हो गए तो कई बार अपने घरसे उक्ताके ये हमारे खेत मे बने घर पे समय बिताने, चंद रोज़ रहने चली आतीं...पाक कलामे माहिर थीं..खासकर महाराष्ट्रियन तौर तरिके की पाक कला। जब भी आतीं, कुछ न कुछ बनाती रहतीं।
ऐसेही ये एकबार कुछ रोज़ रहने आयी थी... सबसे छोटे बेटे की शादी हो चुकी थी...ये उसके घर आके, नयी बहू को घर बसने मे मदद कर रही थीं......और तभी एयर चीफ मार्शल, इद्रीस हसन लतीफ़ के राज्यपाल बननेकी ख़बर मिली। उन्हों ने तहे दिलसे मुबारक बाद दी और देने के बाद कहा,
" मर गया बेचारा...बड़ा अच्छा था...!"
हम सब हैरान, स्तब्ध हो गए...!
दादी ने असंजस मे पूछा:" आपको किसने कहा? ये कब हुआ? हमें तो बस उनके राज्यपाल बननेकी ख़बर मिली...गुज़र कब गए?"
आजी: " अरे कुछ यही १५/१७ दिन हुए...बड़ा अच्छा धोबी था...चद्दरें आदि सब बड़ी अच्छी धोता था...कभी दाग नही रहते थे...मर गया..."
सब के जान मे जान आयी...उन्हों ने मुबारकबाद दी और एकही साँस मे 'मर गया बेचारा' कह दिया! हो सकता है,वो उस समय धोबी के बारेमे सोच रहीं हों, और उसी ख़याल मे गुम, ये शब्द उनके मुँह से निकल गए...कुछ देर सबकी साँस अटक गयी...सिट्टी -पिट्टी गुम हो गयी...
इस घटना के बाद हमारे परिवार मे जब कोई असम्बद्ध बात करता है तो 'मर गया बेचारा' वाक्य , एक मुहावरे की तरह दोहराया जाता है...हमारे ही नही, जिस किसी ने यह क़िस्सा सुना, सभी, तत्सम वाक़यात को 'मर गया बेचारा' ही कहते हैं!
जब वो गुज़र गयीं तो दादी ने अन्तरंग सहेली खो दी ।
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mar gaya bechara ....... ek achcha incident tha........ achcha laga padh ke...
जवाब देंहटाएंसुन्दर पोस्ट है।
जवाब देंहटाएंजन्म-दिवस पर
महात्मा गांधी जी और
पं.लालबहादुर शास्त्री जी को नमन।
कभी कभी ऐसी बाते रोमांच भी पैदा कर देती है और कभी-कभी डंडे भी पड़ सकते हैं। लेकिन आपने अच्छा वाक्या सुनाया मैं भी पढ़कर इतना खुश हुआ कि मर गया। हा हा हा!
जवाब देंहटाएंvसबकी जिंदगी तल्ख-तुर्श-खट्टी-मीठी यादों से भरी होती है लेकिन हर किसी को ऊपर वाला 'शमा' नहीं बनाता कि वह इन्हें खूबसूरत अल्फाज़ का जामा पहनाकर जिंदा कर दे. मैं आपके बयान का मुरीद हूँ और कई बार इसका एतराफ भी कर चुका हूँ. जिस तरह की भाग-दौड़ की जिंदगी आप बसर कर रही हैं, दिन भर की जितनी मसरूफियात हैं, फिर आपकी माशाल्लाह बीमारियाँ, आपके एक्सिडेन्ट्स, गिलहरी, खरगोश, बाग-बगीचे, फूल-पेड़-पत्ते-कशीदाकारी.......और जाने क्या क्या, आपका हौसला ही आपकी कलम को रवानी देता है. और आखिर में 'मर गया.....' वाले वाकये पर एक जोरदार कहकहा, आप भी मेरा साथ दें.
जवाब देंहटाएंha.ha.ha. achhi ghatnaa majaa aaya
जवाब देंहटाएंachhi haa
जवाब देंहटाएंसाल भर नेट से बिलकुल दूर रहा हूँ.ज़िन्दगी की उलझाने सुलझाने में लगा था.खैर वो तो यथावत हैं.लेकिन बिना लिखे जी नहीं लग रहा था.सो फिर से आप लोगों के बीच आ गया हूँ.
जवाब देंहटाएंआप ने इधर बहुत कुछ लिखा है और कई जगहों पर.आपके ललेखन से चकित हो रहा हूँ.ध्यान खींचने वाली खासियत ये है पहली की आपके लेखन में विविधता है.कल तक जो आपके गंभीर ललेखन का आस्वादन करते रहे हैं.उन्हें हास्य और भाषाई अंदाज़े-बयानी से मज़ा आएगा.रचना-संसार पर नयी पोस्ट औरत होने की सज़ा पढ़िए.