कुछ अरसा हुआ इस बात को...पूरानें मित्र परिवार के घर भोजन के लिए गए थे। उनके यहाँ पोहोंचते ही हमारा परिचय, वहाँ, पहले से ही मौजूद एक जोड़े से कराया गया। उसमे जो पती महोदय थे, मुझ से बोले,
"पहचाना मुझे?"
मै: "माफ़ी चाहती हूँ...लेकिन नही पहचाना...! क्या हम मिल चुके हैं पहले? अब जब आप पूछ रहें है, तो लग रहा है, कि, कहीँ आप माणिक बाई के रिश्तेदार तो नही? उनके मायके के तरफ़ से तो यही नाम था...हो सकता है, जब अपनी पढाई के दौरान एक साल मै उनके साथ रही थी, तब हम मिले हों...!"
स्वर्गीय माणिक बाई पटवर्धन, रावसाहेब पटवर्धन की पत्नी। रावसाहेब तथा उनके छोटे भाई, श्री. अच्युत राव पटवर्धन, आज़ादी की जंग के दौरान, राम लक्ष्मण की जोड़ी कहलाया करते थे। ख़ुद रावसाहेब पटवर्धन, अहमदनगर के 'गांधी' कहलाते थे...उनका परिवार मूलत: अहमदनगर का था...इस परिवार से हमारे परिवार का परिचय, मेरे दादा-दादी के ज़मानेसे चला आ रहा था। दोनों परिवार आज़ादी की लड़ाई मे शामिल थे....
मै जब पुणे मे महाविद्यालयीन पढाई के लिए रहने आयी,तो स्वर्गीय रावसाहेब पटवर्धन, मेरे स्थानीय gaurdian थे।
जिस साल मैंने दाखिला लिया, उसी साल उनकी मृत्यू हो गयी, जो मुझे हिला के रख गयी। अगले साल हॉस्टल मे प्रवेश लेने से पूर्व, माणिक बाई ने मेरे परिवार से पूछा,कि, क्या, वे लोग मुझे छात्रावास के बदले उनके घर रख सकते हैं? अपने पती की मृत्यू के पश्च्यात वो काफ़ी अकेली पड़ गयीं थीं...उनकी कोई औलाद नही थी। मेरा महाविद्यालय,उनके घरसे पैदल, ५ मिनटों का रास्ता था।
मेरे परिवार को क़तई ऐतराज़ नही था। इसतरह, मै और अन्य दो सहेलियाँ, उनके घर, PG की हैसियत से रहने लगीं। माणिक बाई का मायका पुणे मे हुआ करता था...भाई का घर तो एकदम क़रीब था।
उस शाम, हमारे जो मेज़बान थे , वो रावसाहेब के परिवार से नाता रखते थे/हैं....यजमान, स्वर्गीय रावसाहेब के छोटे भाई के सुपुत्र हैं...जिन्हें मै अपने बचपनसे जानती थी।
अस्तु ! इस पार्श्व भूमी के तहत, मैंने उस मेहमान से अपना सवाल कर डाला...!
उत्तर मे वो बोले:" बिल्कुल सही कहा...मै माणिक बाई के भाई का बेटा हूँ...!"
मै: "ओह...! तो आप वही तो नही , जिनके साथ भोजन करते समय हम तीनो सहेलियाँ, किसी बात पे हँसती जा रहीँ थीं...और बाद मे माणिक बाई से खूब डांट भी पड़ी थी...हमारी बद तमीज़ी को लेके..हम आपके ऊपर हँस रहीँ हो, ऐसा आभास हो रहा था...जबकि, ऐसा नही था..बात कुछ औरही थी...! आप अपनी मेडिसिन की पढाई कर रहे थे तब...!"
जवाब मे वो बोले: " बिल्कुल सही...! मुझे याद है...!"
मै: " लेकिन मै हैरान हूँ,कि, आपने इतने सालों बाद मुझे पहचाना...!२० साल से अधिक हो गए...!"
उत्तर:" अजी...आप को कैसे भूलता...! उस दोपहर भोजन करते समय, मुझे लग रहा था,कि, मेरे मुँह पे ज़रूर कुछ काला लगा है...जो आप तीनो इस तरह से हँस रही थी...!"
खैर ! हम लोग जम के बतियाने लगे....भाषा के असमंजस पे होने वाली मज़ेदार घटनायों का विषय चला तो ये जनाब ,जो अब मशहूर अस्थी विशेषग्य बन गए थे, अपनी चंद यादगारें बताने लगे...
डॉक्टर: " मै नर्सिंग कॉलेज मे पढाता था, तब की एक घटना सुनाता हूँ...एक बार, एक विद्यार्थिनी की नोट्स चेक कर रहा था..और येभी कहूँ,कि, ये विद्यार्थी, अंग्रेज़ी शब्दों को देवनागरी मे लिख लेते थे..नोट्स मे एक शब्द पढा,' टंगड़ी प्रेसर'...मेरे समझ मे ना आए,कि, ये टांग दबाने का कौन-सा यंत्र है,जिसके बारे मे मुझे नही पता...! कौतुहल इतना हुआ,कि, एक नर्स को बुला के मैंने पूछ ही लिया..उसने क़रीब आके नोट्स देखीं, तो बोली, 'सर, ये शब्द 'टंगड़ी प्रेसर' ऐसा नही है..ये है,'टंग डिप्रेसर !' "
आप समझ ही गए होंगे...ये क्या बला होती है...! रोगी का, ख़ास कर बच्चों का गला तपास ते समय, उनका मुँह ठीक से खुलवाना ज़रूरी होता है..पुराने ज़माने मे तो डॉक्टर, गर घर पे रोगी को देखने आते,तो, केवल एक चम्मच का इस्तेमाल किया करते..!
हमलोगों का हँस, हँस के बुरा हाल हुआ...और उसके बाद तो कई ऐसी मज़ेदार यादेँ उभरी...शाम कब गुज़र गयी, पता भी न चला..!
क्रमश:
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बहुत सुन्दर प्रसंग ---
जवाब देंहटाएंहा--हा--हा-- अन्त बहुत मजेदार।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
सही अंत भला तो सब भला ..................बहुत ही सुन्दर लिखती है ......अनुभव का सुमार ही सुमार होता है आपके रचनाओ मे .......बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति ....................ढेरो बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक प्रसंग है
जवाब देंहटाएं---
नये प्रकार के ब्लैक होल की खोज संभावित
मेरा ब्लॉग देखने के लिए आपका शुक्रिया..., आपने तो कई सारे ब्लॉग बना रखे है जिन्हें देखकर तो में दंग रह गया, आपकी उर्जा देखकर मुझे आश्चर्य भी हुआ , कितना सारा लिखती है आप, वो भी अलग अलग विषयों पर, सोचता हूँ ऐसी उर्जा मुझ में भी होती, इतना सारा में भी लिख पता... खैर... आप लिखती रहिये...जब जैसा मन होगा तब वो पढ़ते रहेंगे...एक बार फिर शुक्रिया... मोक्ष.
जवाब देंहटाएंस्मृतियों को संजो कर रखना और फिर उन्हे शब्दों में पिरोना आप बाखूबी जानती है।
जवाब देंहटाएंरोचक संस्मरण है, बधाई!
मजेदार अति सुन्दर प्रसंग .
जवाब देंहटाएंआप से संवाद तो पहले हो चुका है लेकिन एक बात पूछना रह गई थी इसलिए फ़िर चला आया, आप ने कहा कि मेरा ब्लॉग पढ़ते हुए आपको हैरानी हुई , जानना चाहता हूँ ऐसा क्यों ? मोक्ष।
जवाब देंहटाएंआपके संस्मरण तो वाकई रोचक और लाजवाब हैं....चाहे "टंगडी प्रेसर" हो, "चमेली के मंडवे तले वाला किस्सा", "प्यार परबत", "हमस फर", या फिर "सह परिवार"......हंसा-हंसा कर लोट-पोट कर दिया आपने तो.....साथ ही संजीदा संस्मरण भी पूरे मनोयोग से प्रस्तुत किये हैं......इसके लिए बधाई.....
जवाब देंहटाएंसाभार
प्रशान्त कुमार (काव्यांश)
हमसफ़र यादों का.......
bhut acha aur rochak sansmarn.
जवाब देंहटाएंshamaa jee सच कहूँ इस भूत यानी अतीत का किस्सा पढकर सचमुच बहुत दिनो बाद ज़ोर से हँसी आई.अपनी study मे मै अकेला ही ठहाका मार कर हँस पडा अच्छा हुआ कोई देखने नही आया . "टंग डिप्रेसर" हमेशा याद रहेगा . चिंता ना करे यह किस्सा अब मेरे खजाने मे है आपके reference के साथ हमेशा
जवाब देंहटाएंसंस्मरणों के चटखारे मन को हमेशा गुदगुदाते रहें, आपकी लेखनी ऐसे ही कतरनी की तरह चलती रहे. मैं लगभग डेढ़-दो माह बाद इस स्थिति में आ सका कि आपके लेखन पर कुछ लिख सकूं. अपना ये तेवर बरकरार रखियेगा. अगले अंक की बडी बेसब्री से प्रतीक्षा है. मेरा प्रॉब्लम अब खत्म हो चुका है, सिस्टम की खराबी दूर हो, इससे पहले ही दूसरा जैसे तैसे करके ले ही लिया. मुहावरे का उलट यही है, "नया सौ दिन पुराना नौ दिन". आशा करता हूँ अब हम ज्यदा लम्बे गैप पर नहीं मिलेंगे, आप भी दुआ करना.
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक रहा यह प्रसंग.
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंरोचक कथा। जारी रखिए।
जवाब देंहटाएंआपको मेरी शुभकामनाएं।
Bahut majedar prasang, aapki aisee yaden achchi lagatee hain.
जवाब देंहटाएंऐसे ही हर शाम गुजरती रहे, बस यही कामना है।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
ha ha ha ha.... he he he.... hu hu hu...
जवाब देंहटाएंbahut badiya...