मंगलवार, 2 जून 2009

बोले तू कौनसी बोली ?२

मै मराठी भाषा बचपनसे सीखी...पाठ्शालामे माध्यम भी वही था, जबकि मेरे घरमे हिन्दुस्तानी बोली जाती थी..और लिखत उर्दू या हिन्दुस्तानी मे मेरी माँ तथा दादी बड़ी सहज थीं..., पर बात करनेका ढंग, या लहजा, रोज़ मर्रा की बोलीमे बदल जाता..कभी हैदराबादी भाषाका असर आता( खासकरके मेरी दादीकी भाषापे या फिर गुजराती का )....माँ की भाषा और उच्चारण , हमेशा गुजराती से प्रभावित रहे...वोभी मूल वडोदरा की थीं...दादी खम्बात की....दादाकी भाषा पे गुजराती और बम्बैया हिन्दी, इन दोनोका प्रभाव था। लेकिन "गयेला," कियेला" ऐसे शब्द बोलचालमे हरगिज़ नही आते।

दादा जब अंग्रेज़ी बोलते तो लगता कि , कोई ऑक्स्फ़र्ड मे पढ़ा व्यक्ति बोल रहा है। उर्दू पढ़ते थे, लेकिन बोलनेमे लहजा उसकी नज़ाकत खो देता...उनका येभी इसरार रहता कि, गर हम बच्चे हिन्दुस्तानी मे बोल रहे हों,तो उसमे अंग्रेजीके शब्द नही आने चाहियें! खैर मूल मुद्देपे आती हूँ...

मै स्कूल मे चार भाषाएँ सीखती रही..... चूँकि मेरी मातृभाषा मराठी नही थी, मै और अधिक सतर्कता से उस ओर गौर करती...उसमे मुझे मराठी गीत, या अन्य रेडिओपे होनेवाले कार्यक्रम, इनकी बड़ी सहायता मिली...इतनी,कि, मै हर भाषामे सबसे अधिक अंक प्राप्त कर जाती...मराठीके कुछ गीत जो लताजी के गाये हुए हैं, मै उन्हें ताउम्र भूलही नही सकती...!

अब ज़िन्दगीमे ऐसे मौक़े आए जब मुझे ये भाषा, किसी अमराठी भाषिक को सिखानी पड़ गयी...उनमे मेरे बच्चे तो शुमार थेही..उसके पहले मेरे पती शुमार हो गए...सेवा कालके पहले कुछ साल तो डेप्युटेशन पे गुज़रे...लेकिन जब होम कैडर मे लौटे,तो मराठी का इम्तेहान देना ज़रूरी हो गया....हम लोग ठानेमे थे उन दिनों...समय कम मिलता था, इन्हें सिखाने के लिए...जब कभी, किसी कारन, ठाने से मुम्बई जाना होता ,या फिर जब वापस लौटते, तो मै इनके पाठ शुरू कर देती...उन दिनों पहली बार मुझे समझ मे आया कि, मराठी, देशकी सबसे अधिक क्लिष्ट भाषा है! ! और बांगला सबसे अधिक आसान! ये तो मैंने शुक्र मनाया कि, मराठी और हिन्दी की लिपि देवनागरी ही है...न होती,तो पता नही" मेरा क्या होता(कालिया)?"

अब इस भाषा का व्याकरण मैंने तो ईजाद किया नही था...पर जब कभी इन्हें टोक देती तो ये मुझपे बरस पड़ते...! मानो ये टेढा व्याकरण मेरी ईजाद हो! ख़ैर, किसी तरह पास तो होही गए....वरना तनख्वाह मे बढोतरी रुक जाती!
अब बच्चों की भी बारी आ गयी थी...और हमारी पाठ्य पुस्तकें तो सीधे साहित्य सिखाने चल पड़ती हैं...बोली भाषा नही!

ऐसेही एक शाम याद है...कुछ इनके सहकारी, हमारे घर भोजनपे आए हुए थे। पती पुलिसमे , महाराष्ट्र कैडर के ..पत्नी डॉक्टर...सिविल अस्पताल मे नौकरी करती थीं...उन्हें भी मराठी की परीक्षा दिए बिना चारा नही था..!
जब इनके पती कोल्हापूर मे तबादले पे आए हुए थे, मोह्तरेमा को , अखबारों के मध्यम से मराठी सीखने की सूझ गयी...

बोली," मै सुबह चाय की चुस्की लेते,लेते मराठी अख़बार की हेड लाइन्स पढ़ ने लगी...छपा था," एक दुम जली बस गड्ढे मे गिरी "!( ये वाक्य ,वैसे तो मराठी मे था...यहाँ,पाठकों की सुविधा की खातिर हिन्दी मे लिख रही हूँ..)...
"अब मै हैरान..मैंने अपने अर्दली से पूछा,भैया, ये क्या चक्कर है...हमने हवाई जहाज़की दुमके बारेमे सुन रखा था...अब ये बस की कहाँ से दुम पैदा हो गयी......और पहले दुम जली, फिर वो जाके गड्ढे मे गिरी....!
"मैंने ने जब ये अर्द्लीको पढ़के सुनाया तो वोभी बौखला गया...ऐसी बात उसनेभी कभी सुनी थी ना पढी थी...!"

खैर, उस महिलाने जैसेही वो हेड लाइन सुनायी, मेरा हँसीके मारे बुरा हाल हुआ जा रहा था....लोग मुझे निहार रहे थे,कि, इसे हो क्या गया है,जो इतना अधिक हँसती चली जा रही है...!
मै थी,कि, उन्हीं के मूहसे वो अफ़साना गोई सुनना चाह रही थी...बिना दख़ल दिए...समझ रही थी, कि,किस ग़लत फ़हमी के कारण, ये अजीबो गरीब, और हास्यास्पद प्रसंग उभरा है...

खैर, उन्हों ने आगे सुनाया," मैंने उसे अखबार थमाते हुए कहा, 'देख ये, पढ़ इसे, और मुझे बता के ये क्या चक्कर है...पहले तो बसकी दुम जली और जाके गड्ढे मे गिरी...अर्द्लीने पढ़ा और अपनी हँसी को दबाते हुए बोला,'बाई साहेब, ये लिखा है,"दुमजली" लेकिन इसे मराठी मे पढ़ा जाएगा," दु मजली", मतलब दो मंज़िली...डबलडेकर बस!"

लिखा तो "दुमजली", इसी तरह से जोडकेही जाता है, पढ़ते समय, दु मजली पढा जाता है!

अब सारे मेहमान हँस हँस के लोटपोट होने लगे! !

इस वाक़या के बाद जब कभी मै अपने या किसी औरके बच्चों को मराठी या हिन्दी सिखाती और ग़लत संधि विच्छेद से पढ़ते सुनती, तो मेरा ये "कोड वर्ड"बन गया था..मै कहती रहती," दुमजली, दुमजली."...इशारा होता, अलग, अलग तरहसे संधि विच्छेद करके आज़माओ!!!

एक बार मुम्बई से नाशिक जा रही थी..बोगीमे काफ़ी सारे परिचित मित्र आदि बैठे मिले...बातोंमे बात चली तो मैंने, उन मे से सभी हिन्दी भाषिकों को " दुमजली" ये शब्द ,देवनागरीमे लिखके पढने के लिए दिया...सभीने उसे "दुमजली" ही पढ़ा...और हैरानीसे पूछा, "ये बताओ, पहले, कि, बस की दुम जली और फिर गड्ढे मे गिरी, ये लिखना कुछ ख़ास दर्शाता है क्या....."

जब सही संधि विच्छेद सामने आया तो पूरी बोगी ठहाकों से गूँज उठी....

भाषा भेदसे मैंने लोगों मे ज़बरदस्त मनमुटाव होते देखा है..लेकिन इन संस्मरणों मे सिर्फ़ मज़ेदार किस्से ही बयाँ करूँगी!

अगली बार कुछ और...ऐसे तो पिटारे भरे पड़े हैं!

क्रमश:

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छा लिखा है आपने । आपका शब्द संसार भाव, विचार और अभिव्यिक्ति के स्तर पर काफी प्रभावित करता है ।

    मैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-फेल होने पर खत्म नहीं हो जाती जिंदगी-समय हो तो पढ़ें और कमेंट भी दें-

    http://www.ashokvichar.blogspot.com

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  2. बहुत खूब।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  3. आपकी अभिव्यक्ति प्रभावशाली है

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  4. दूसरी भाषाओं के साथ इस तरह की स्थितियां आ ही जाती हैं।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  5. गर्दूं-गाफिल ने कहा…
    शमाजी
    शब्द ब्रह्म है शब्द नाद है शब्द रसा अवतार
    सुख आलेपन यही शब्द है यही तीर तलवार
    शब्द सामर्थ्य धारण करने वाले
    इन शब्दों से क्या क्या खेल दिखातें हैं
    कभी हंसा हंसा कर पेट में बल दल देते है
    तो कभी आंसुओं की नदिया आँखों में डाल देते है
    इसीलिए यूँ ही हंसते हँसाते रहिये .
    कभी ख़ुशी कभी गम जिंदगी का दूसरा नाम है ,
    इसमें डुबकियां लगाते रहिये .
    जिंदगी गीत नदी है
    शब्दों की नौका में बैठ कर
    स्वरलहरियों में विहार का आनंद उठाते रहिये
    shubh kamnaye

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