मंगलवार, 21 अप्रैल 2009

ये कहाँ आ गए हम...?७

उस शाम पे आके अटकी हूँ...उसवक्त, जब मेरे कनोंपे वो ख़बर टकराई...मुझे समझ नही आ रहा था कि मै क्या प्रतिक्रिया करूँ...मेरी क्या प्रतिक्रया होनी चाहिए...??
सबसे पहले तो मैंने वंदन और निम्मीकेही नंबर घुमाए...क्या कमाल था कि दोनों " पोहोंचके बाहर" थे...!! ऐसाभी क्या इत्तेफाक़??उठाके कहाँ दे मारूँ इन उपकरणों को ...? ये नज़दीकियों के साधन, जब दूरियाँ पैदा कर दें, तो इनका क्या फायदा? किसे कहूँ, कि रुको...अभी इन साधनों द्वारा दी जा रही जानकारीपे विश्वास ना करो? जिनसे कहना चाह रही थी...जिनसे सत्य जानना चाह रही थी...उन्हींसे संपर्क नही हो रहा था...

मैंने निम्मीके सास -ससुरसे पहले संपर्क करना चाहिए??क्या उनके कानों तक तो ये ख़बर नही पोहोंच गयी? गर पोहोंच गयी हो तो मै क्या कहूँगी...? मेरे पास कहनेको क्या रहेगा....?
जब मुझेही उस खबरकी यथार्थता मालूम नही, तो मै क्या कह सकती हूँ? ये, कि आप अभी उस खबरपे विश्वास न रखें...?
और गर नही मिली वो ख़बर तो मेरी परेशानी, मेरी अधीरता वो भाँप नही जाएँगे? और गर निम्मी या वंदन, दोनोसे उनका संपर्क नही, तो क्या मुझसे नही पूछ बैठेंगे...कि मैं कुछ जानती हूँ, उन दोनोंके बारेमे ?
सहजही पूछा जानेवाला प्रश्न होगा वो...तब मै क्या कहूँगी? के कुछ नही जानती? जब बादमे पता चलेगा कि, मै जानती थी...तो फिर क्या जवाब दूँगी? सिर्फ़ ये कि, उस खबरकी सच्चाई नही जानती थी?

मैंने मेरे पतीसे सबसे पहले संपर्क करना चाहिए...कैसी अजीब बात है...मै जब, जब बेहद शशोपंज मे रही हूँ, हर वक्त अकेली रही हूँ...इसमे कभी कोई मेरे साथ नही होता...क्या ये मेहेज़ एक इत्तेफाक होता है या ईश्वर हरबार मेरी परिक्षा लेना चाहता है?

मैंने इन्हें फोन लगाना शुरू कर दिया...." आप जिस व्यक्तीसे संपर्क करना चाह रहे हैं, वो इस वक्त पहुँचके बाहर है.."...उफ़ ! बार, बार यही एक वाक्य मेरे कानोंसे टकराता रहा...निम्मी और वंदन से तो संपर्क पहलेही नही था...

क्या ख़बर थी वो? ख़बर थी...किसी वंदन के सहयोगी द्वारा किया गया वो फोन था...." वंदन की प्रथम पत्नी गर्भवती है...वंदन केही बच्चे की माँ बनने वाली है...!!"
ऐसे कैसे हो सकता है? ऐसी बात वंदन करही नही सकता...लेकिन वो फोन क्यों नही उठा रहा है? वो तो अगली सुबह निम्मीके पास पोहोंचने वाला था....तो निम्मीसे संपर्क क्यों नही कर रहा??
और निम्मी ....? वो मेराभी फोन क्यों नही उठा रही ?? मेरा फोन बजबजके बंद हो रहा था...कितनी बार कोशिश कर चुकी थी....क्या उसे मेरे पहले ये भयंकर ख़बर मिल गयी?
और येभी कि, वंदन अब उसके पास नही लौट सकता? उसने येभी मान लिया कि, निम्मी या निम्मीके परिवारवाले उसे माफ़ नही करेंगे? के गर उसे अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी निभानी होगी तो उसे, उसकी प्रथम पत्नीके पासही लौटना होगा...? तो क्या निम्मीके प्रती उसकी कोई ज़िम्मेदारी नही? उसकी प्रथम पत्नी कैसे उसपे ये ज़िम्मेदारी डाल सकती है, जब वो कोई छोटी बच्ची नही...? अपने पतीसे कानूनन बिभक्त हो चुकी है...निम्मी वंदन की क़ानूनन ब्याहता है....

जोभी हो, वंदन की ज़िम्मेदारी है, कि आमने सामने बात साफ़ करे....जिस विश्वासके साथ निम्मीने उसे उसकी भूतपूर्व पत्नीके पास भेजा था....उतनीही जिम्मेदारीसे उसने अपना बर्ताव रखना चाहिए था...

सुबह हो गयी....लेकिन मै किसीसेभी संपर्क नही कर पायी....लग रहा था, जैसे मै किसीभी वक्त अपने होश खो बैठ सकती हूँ....और एक दिन बाद मेरे बच्चे, जो दोनों शेहेरके बाहर थे, लौट आएँगे...मै उनसे अपनी हालत तो नही छुपा सकती...वंदन की कितनी इज्ज़त करते हैं दोनों...उन्हें क्या कहूँगी??

एकेक पल, मानो एक सदीकी तरह गुज़र रहा था....पर वक्त थम नही रहा था...उसी रफ्तारसे गुज़र रहा था....मुझे चाहे एक पल,एक युग लगे....शांत, स्तब्ध मौहौलमे, मेरे कमरेकी घडीकी टिकटिक सुनायी दे रही थी....मेरे हाथसे फिसल रहे लमहोंका कितना अधिक एहसास करा रही थी....

मेरे घरमे कितनी विलक्षण खामोशी थी....कान कितने अधीर थे कि, कहीँ कोई इंसानी वजूदका एहसास हो...कुछ तो आवाज़ हो...एक बार तो फोन बजे...चाहे कहींसे हो....अपने मोबाइल से मै चिपकी हुई थी....चाय बनाऊँ ? कॉफी बनाऊँ? पियूँ ? बेहतर लगेगा? नही...बनानेकी ताक़त नही है...कामवाली औरत को छुट्टी दे रखी थी....

पडोसमे जाऊँ? क्या कहूँ वहाँ जाके? जिनके आगे मैंने वंदन को एक फ़रिश्ता बनाके पेश किया था....उन्हें ये कहूँ कि वो फ़रिश्ता क्या...एक घटिया से घटिया आदमीकी तौरपे सामने आ रहा है....बेज़िम्मेदार, डरपोक...

लेकिन मुझे अभी सच पता था? सचमे ऐसा हुआ था? बेहतर होगा, मै खामोश रहूँ....लेकिन ये इंतज़ार मेरी जान ले रहा था...असह्य लग रहा था........टिक टिक....खामोशी को भेदनेवाली यही एक आवाज़.....

मै लेट गयी...पैर...पैर क्या, अब तो पूरा जिस्म काँप रहा था...
और फोन बजा...मै ऐसे झपटी, जैसे चीता किसी शिकारकी तरफ़ झपटता हो....फोन मेरे पतीका था...
" क्या कर रही हो? तुम्हारी आवाजमे इतनी परेशानी क्यों है?",इनकी आवाज़...
" परेशाँ हूँ...बेहद...आपसे कितनी बार संपर्क करनेकी कोशिश कर चुकी...क्या आपको मेरे sms भी नही मिले?",मै बरस पड़ी ...
" नही तो..मुझे तो हैरानी हो रही थी कि, मै फोन करता जा रहा था, और मुझे मेसेज मिल रहा था," पोहोंचके बाहर...", इनका उत्तर...
"कमाल है...मुझे आपकी ओरसे यही मेसेज मिल रहा था...खैर !आप अभी के अभी, पहले वंदन और फिर निम्मीसे संपर्क करनेकी कोशिश कीजिये....उनसे..."मै इन्हें निर्देश देने लगी....
"लेकिन बात क्या है? मुझे पहले ये तो बताओ...क्या परेशानी है? ऐसी क्या जल्दबाज़ी है...? हो क्या गया है तुम्हें?", इन्होंने टोक दिया....
मैंने संक्षेपमे इन्हें सारी बात बता दी....ये कुछ समय स्तब्ध हो गए....फिर बोले,
"मेरी निम्मीसे बात हुई.....निम्मीको ये ख़बर दी गयी है....वो पूरी तरह टूट गयी है....मै जानना चाह रहा था तुमसे...कि तुम्हें कुछ आगेकी बात पता है....निम्मीने मुझसे कहा,' मै तो वंदन को माफ़ कर दूँ...पर मुझसे बात तो करे....मै समझ सकती हूँ...इंसान है...उसने उस औरतसे कभी प्यार किया था...लेकिन मुझसे बात तो करे....'..."
इन्हों ने मुझे ख़बर दी।

"तो निम्मीने आपसे बात की..मुझसे नही...? कमाल है...? उसने एक पलभी नही सोचा कि, जब मुझे ख़बर मिली होगी तो मुझपे क्या गुजरेगी..?"अब मुझे निम्मीपे गुस्सा आने लगा....
" देखो, जो मेरे साथ हुआ...वही उसके साथ...उसेभी तुम्हारा नंबर नही मिल रहा था...और ना मुझे पता था, ना उसे, कि तुम्हें किसीने ख़बर दी होगी...", मेरे पतीने मुझसे बताया...
"तो अब हमें क्या करना चाहिए? कैसे पता चलेगा कि, सच्चाई क्या है? कौन बतायेगा? आप वंदन का फोन तो मिलाएँ...", मै बताने लगी....
"तुम्हें क्या लगता है..मैंने वंदन को फोन नही लगाया होगा...? "इन्होंने पूछा....
"चलिए ठीक है...जब मुझे येही नही पता था कि, आपसे निम्मीका संपर्क हुआ, तो मै और क्या कह सकती थी...?"मैंने जवाब दिया....

निम्मीकी प्रतिक्रया सुन, मुझे कुछ तो तसल्ली मिली...गर वंदन सीधे संपर्क करे,तो बात बन सकती है....एक सदमाही सही...हम सभीके लिए...लेकिन, जीवन आगे तो बढ़ सकता है....
उस राततक मेरे पती और बच्चे लौट आए....बच्चे अपनेआपमे इतने मशगूल थे, कि घरमे क्या हालत हैं, उन्हें महसूस ही नही हुआ...थके हुए थे...जल्दी सोभी गए...एक और रात गुज़र गयी....

अंतमे वो लम्हा भी आ गया जब वंदन हमसे रु-बी-रु हुआ....मै बता नही सकती कि, वो दिन मेरे लिए क्या लेके आया....

सारी बातें साफ़ होने लगीं...जो हमें बताया गया था, वो पूर्ण असत्य था...वंदन की पत्नी बीमार थी...वंदन उसे अस्पताल ले गया था...
और जिस व्यक्तीने वो ख़बर दी...वो? उसने क्यों ये सब कहा....वंदन ने उसे नोटिस दे दी थी....जिस अस्पतालसे वंदन जुडा हुआ था, उस अस्पतालमे उस व्यक्तीने कुछ बोहोतही अनैतिक हरकत की थी.....बस उसी बातका उसने बदला लेना चाहा..और हमारे अत्याधुनिक संपर्को के ज़रियों ने, उसने सोचाभी नही था, उतना उसका काम आसान कर दिया...

मेरा ईश्वरके ऊपर, उस विराट शक्तीके ऊपर, तो विश्वास औरभी बढ़ गया...लेकिन, इन संपर्को के ज़रियोंपर कितना विश्वास हमने करना चाहिए....ये सवाल खड़ा कर दिया...आगाह कर दिया उन ४८ घंटोंने....हमें जबतक हमारा अपना, अपने मुहसे कुछ नही कहता....वोभी आमने, सामने...किसी औरपे विश्वास नही रखना चाहिए...हमारी ज़िंदगी तबाह हो सकती है...

दुआ करती हूँ, ऐसा भयानक दौर किसीके ज़िन्दगीमे ना आए.....आज वंदन और निम्मी हमें उतनेही प्यारे हैं...जितनेकी कभी थे....अच्छा हुआ..मुझे ईश्वरने सही बुद्धी दी, कि, मैंने निम्मीके सास-ससुरसे संपर्क नही किया...वरना, उन्हें, उनके बुढापे मे ना जाने कितना अधिक सदमा मिल जाता....अच्छा हुआ कि, उस व्यक्ती के पास उनका नंबर नही था....वरना उसने उन्हें जीते जी मार दिया होता....
समाप्त।

4 टिप्‍पणियां:

  1. yahee zindgee hai ...........kaisee ye pahelee . jab chahte hain log bant bhee dete hain . lekin dheeraj bhee ho varna duriyan badh hee jayengee .

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  2. एक बेहद गंभीर मसले पर आपने व्याख्यात्मक चर्चा की.
    शायद कुछ लोग इसे आत्मसात भी करें और सुधरने की कोशिश भी करें .
    - विजय

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  3. शमा जी ,

    आपको पढना एक अद्भुत अनुभव होता है । अपने संस्मरण कहते हुए आपकी लेखनी कैसी बहती है ; कल कल छल छल

    आप ने कहानियाँ लिखी होंगी ,उन्हें पढ़ने की इच्छा जाग्रत हुई है । चाहत क्या है ?इस पर कुछ लिखा था ,आपके साथ बाँट रहा हूँ ।


    चाहना हक नहीं उल्फत ,मुहब्बत तो है मिट जाना
    बाँटना मुस्कुराहट ही ,फकत चाहत का पैमाना

    जमाने के लिए रोता , जमाने लिए हंसता
    मजहब जिसका मुहब्बत है जमाने के लिए मरता
    उम्मीदें जिसने पालीं हैं ,वही गमगीन होता है
    जिसे तुम आजमाओगे, वही टूटेगा पैमाना

    खोल लो दिल के दरवाजे ,हवाओं को गुजरने दो
    अंदेशे तो सदा होंगे ,उन्हें भी वार करने दो
    सच्चाई जान लेने दो , गुरुर ऐ बद गुमानी को,
    वो चाहत ख्वाब है याफ़िर दिलेवहशत का अफसाना

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  4. चाहना हक नहीं उल्फत ,मुहब्बत तो है मिट जाना
    बाँटना मुस्कुराहट ही ,फकत चाहत का पैमाना

    जमाने के लिए रोता , जमाने लिए हंसता
    मजहब जिसका मुहब्बत है जमाने के लिए मरता
    उम्मीदें जिसने पालीं हैं ,वही गमगीन होता है
    जिसे तुम आजमाओगे, वही टूटेगा पैमाना

    खोल लो दिल के दरवाजे ,हवाओं को गुजरने दो
    अंदेशे तो सदा होंगे ,उन्हें भी वार करने दो
    सच्चाई जान लेने दो , गुरुर ऐ बद गुमानी को,
    वो चाहत ख्वाब है याफ़िर दिलेवहशत का अफसाना

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