शुक्रवार, 8 मई 2009

नेकी कर कुएमे डाल ! ३

नेकी और पूछ, पूछ...! इस उक्तीके साथ मै ज़िन्दगीमे बढ़ती चली गयी....बिना किसीके कहेही चुपचाप काम कर देना मेरी आदतसी बन गयी थी...और कुएमे तो डालही देती थी...! कई बार कोई मुझे याद दिला देता," तुमने हमारी "उस" समय बेहद मदद कर दी...वरना पता नही क्या हो जाता॥!"
सुनके मै कुछ देर सन्न-सी रह जाती, क्योंकि मुझे क़तईभी याद नही आता की, मैंने कौनसी मदद कर दी थी? खैर..

जब हम उस शेहेरमे पोहोंचे ही थे, तब उसने अपने बच्चों के बारेमे अपनी तम्मनायें मुझसे कहीँ...बेटा तो केवल दो सालका था...! पहले तो वो उसे वो पता नही क्या बनाना चाह रही थी, लेकिन, मेरे पतीसे मुलाक़ात होनेके पश्चात उसके मनमे घर कर गया," इसे तो एक IPS अफसरही बनाना है..."

बड़ी बेटीको मेडीसिन मे दाखल करना है...जबकि, वो मेरीही बेटीके क्लासमे थी..५ वी की...! इसलिए क्योंकि, उसकी जेठानी, जो स्वयं एक आर्किटेक्ट थी, वो चाहती है...
हैरत तो ये थी कि, ये मेरी सहेली साडियाँ तक उसकी जेठानी की पसंदकीही पहेनती थी! वजेह ? जेठानी मुम्बईमे रहती थी..मुम्बई तो अत्याधुनिक परिधानों की नगरी कहलाती है...! मेरी देखा देखी उसने अपना वस्त्रोंका चुनाव तो बदल दिया...कहीँ ना कहीँ, उसपे इस बातका प्रभाव पडा कि, मुझे किसीभी "लेटेस्ट" परिधानमे कभी कोई रुची ना पहले रही ना तब थी...नाही मुझे वस्त्रों की कीमत असर करती...
हाँ...उसे वस्त्रों की कीमत की ज़रूर हमेशा परवाह रही...

बीछ्वाली बेटीको वो टीचर बनाना चाहती थी...कि उसके बाद स्कूलकी धरोहर वो उस बेटीको सौंप देगी...
बड़ी बेटीको उसने हर तरीकेसे ,हादसे ज़्यादा छूट दे रखी थी...१४ सालकी उम्र सेही वो टूवीलर चलाती रही...पोशाख भी, उसके, उस शेहेरके हिसाबसे बेहूदा होते थे...वो शिकायत करती," मुझे इस शेहेर की मानसिकता नही अच्छी लगती...सड़क पे सब मुझे घूरा करते हैं.."
इस बातका मैंने कभी जवाब देना उचित नही समझा....

एक दिन इस सहेलीने मुझे कहा," जानती हो मेरी बड़ी बेटी क्या बनना चाहती है? फ़िल्म अभिनेत्री ...! मेरी जेठानी सुनेगी तो क्या कहेगी? तुम्हें क्या लगता है, मैंने इसे किस तरह से परावृत्त करना चाहिए?"
" तुम सचमे मेरी सलाह जान लेना चाहती हो?" मैंने पूछा...
" और नही तो क्या...? इसीलिये तो पूछ रही हूँ..?उसने उत्तरमे कहा।
" तो फिर उसे परावृत्त करना छोड़ दो..अभी तो वो केवल ५ वी कक्षामे है...कह दो उसकी, अपनी पढ़ाई तो पूरी करे..कमसे १२ वी कक्षा तक...फिर देख लेंगे...और वैसेभी, गर वो एक अभिनेत्री बनना चाहती है तो उसमे बुरा क्या है? अभिनयमे जिनका सानी नही नही, ऐसी मिसालें हैं हमारे सामने...और अगर चरित्र को लेके परेशाँ हो,तो, वो तो उसके अपने ऊपर निर्भर है...जबतक वो नही चाहेगी, उसे कोई बहका नही सकता...और ये बात किसीभी पेशेसे संलग्न नही..फिल्मों मेभी ऐसी मिसालें हैं, जहाँ नायिकायों ने बेहूदा वस्त्र पेहेंनेसे इनकार किया है..येतो, बुरा ना मानो, अभीसे पेहेन लेती है!...."
जब उसकी ये बेटी ८वी कक्षामे आ गयी, उसे, उसकी जेठानीकी कहने परसे, एक बडेही मशहूर international स्कूलमे भरती करा दिया...
अब बीछ्वाली बेटी भी ज़िद करने लगी,कि, उसकी बेहेन जा सकती है, तो वो क्यों नहीं? अब इसने पैसोंका किसी तरह जुगाड़ कर उसेभी भेज दिया...लेकिन वो लडकी कुछ ही दिनोंमे लौट आयी...
बड़ी बेटीके १० वी कक्षामे पोहोंचते पोहोंचते, उसपे सेरामिक डिजाइनर बननेका भूत सवार हो गया...और सच तो ये है,कि, वो बनभी गयी..फिलहाल UK मे स्थायिक है..!उसने एक अँगरेज़ लड़केसे ब्याह्भी कर लिया...!
मँझली बेटी आज एक मशहूर विमान सेवामे एयर होस्टेस है...और मेरी सहेलीको इस बातका बेहद अभिमान है....ये लडकी जब मुम्बई मे अपनी पढाई कर रही थी...तब एक पग की हैसीयतसे रह रही थी...बादमे मेरी सहेलीको कई बातें पता चलीं...अपनी बेटीके चालचलन को लेके...पर उसे समझा बुझाया गया ,तो,वो सही राह्पे आभी गयी...
बेटा पायलट बन गया है..US मे स्थित है..
चलो, ये तो बादकी बातें हुईं...

मेरी ये सहेली, हमेशा किसी ना किसीसे परेशाँ हो मेरे पास दौडे चली आती...हमारा घर ( या कहिये..हमारे घर, क्योंकि उस शेहेरमे ४ अलग,अलग मकान बदले गए....मेरे पतीके २ तबादले उसी शेहेरमे हुए...)हमेशा उसकी स्कूल तथा उसके घरके पासही हुआ किया...सिर्फ़ एकबार छोड़, जब हमें चंद महीने किरायेके मकानमे रहना पडा....

उसकी हर बात मै खुले मनसे सुन लेती...कई बार अन्य लोगोंसे पंगेभी ले लेती...उसे हरसमय येभी शंका रहेती,की, कोई ना कोई उसका फायदा उठा लेता है..दूसरी ओर येभी कहती,कि, वो चाहे किसी समारोहमे जाय, लोग उसीके इर्दगिर्द हो जाते हैं...वो इतनी हरदिल अज़ीज़ है...! जानती थी,कि, ये उसका यातो बचपना है, या कहीँ अपने मनही मन असुरक्षित महसूस करती है..

उसे येभी गुरूर था,कि, उसे कोईभी भारतीय संगीत या नृत्य, या कला पसंद ही नही...नाही उसके पतीको...इसमे चाहे किसीने उसके स्कूल के समारोह के आयोजनोंमे कितनीही मदद क्यों ना की हो, वो उस व्यक्ती के किसी ऐसे समारोहमे जाना अपने शानके ख़िलाफ़ समझ लेती...मै जाती तो मेरे साथ चलीभी आती...आयोजनके स्थलपे पोहोंच, उसे फिर वही गुरूर रहता कि, देखा, सब कितना मेरेही करीब आना चाहते हैं...पता नही मुझमे कुछ हैही ऐसा जो लोग खिंचे चले आते हैं..

इन सब बातोंको सुन लेनेकी मुझे आदत हो गयी थी...और सुनके ना मुझे खिज होती ना, नाही बुरा लगता...वो जैसी थी, मैंने उसे वैसाही स्वीकारा था...और उसके गुन अवगुण जोभी थे, उसमे उसके चरित्र को लेके कोई छींटा कशी नही कर सकता था...उसपे कईयों ने ये इलज़ाम भी लगाया कि, वो, स्कूलमे प्रवेश देते समय अनुदान लेती है...मै जानती थी, ये सच नही था...ये इलज़ाम उन्हीं लोगों ने लगाये, जिनके बच्चों को एक विशिष्ठ संख्याके कारण किसी वर्गमे प्रवेश नकारा गया...

खैर...हमारा कभी तो तबादला होनाही था...हो गया...बंजारों की ज़िंदगी बिताते रहे...हमारे मुम्बई मे रहते, रहेते,समाचार मिला कि, उसके भाईकी ह्त्या कर दी गयी...ह्त्या उसके भाईके रहते घरमेही हुई...रातमे हुई...घरके व्यक्तियों के अलावा कोई अन्य घरमे आया हो, इसका सबूतभी नही था...
घरमे रहनेवाले व्यक्ती थे, केवल उस भाईका अपना बेटा और उसकी पत्नी...लेकिन, कुछ दिनों बाद केस रफा दफा हो गया...इस भतीजे को इस सहेलीने काफ़ी प्यारसे अपने घर बुला बुलाके पढाया भी था...जब वो लड़का स्कूलमे था....लेकिन बादमे उसने पढ़ाई छोड़ दी...अपने पिताकी ही तरह, वो "अन्य" कामों को लेके मशहूर रहा....

उन कामों को मै कलमबद्ध नही करूँगी...यही बेहतर होगा...जिन राजनेताओं के साथ उस परिवारका उठना बैठना था, उनके बारेमेभी नाही लिखूँ तो बेहतर...लेकिन ये सब जानते हुएभी मैंने उसका साथ देना नही छोडा...
मुम्बईकी पोस्टिंग मे जब हमलोग थे, उसके पिताका निधन हो गया...उसके पूर्व उनपे किसीने प्राणघातक हमलाभी किया था...US बातका भी कभी पता नही चल सका कि, क्यों और किसने...उनकी म्र्युत्यु तो दिलके दौरेसे हुई....
मुम्बईके पोस्टिंग मेही रहेते, उसके जेठानी, जो बेहद तेज़ रफ़्तार वाहन चालक थी, उसके हाथसे एक भयानक हादसा हो गया..जिसमे सहेलीके ससुर की म्र्युत्यु हो गयी...जेठानी ख़ुद कई महीनों अस्पतालमे पड़ी रही...ये हादसा पुनेमे हुआ...

इस सहीलेने और उसके पतीने अपना एक छोटा-सा फार्म हाउस भी बना लिया...साधारणतः, मै बिना पूछे किसीको सलाह मशवेरा देतीभी नही...उसने मुझे फार्म हाउस का नक्शा बताया...ज़ाहिर था,कि, आर्किटेक्ट मुम्बई काही होना ज़रूरी था...US छोटे शेहेर मे कौन इतना क़ाबिल था? जब नक्षेको लेके उसने मेरी राय जानना चाही,तो मैंने सिर्फ़ इतनाही कहा," नक्शा तो बेहद अच्छा है, लेकिन ये जो "स्प्लिट लेवल" है, मुझे ज़रा खतरनाक लग रहा है..."

उसका उत्तर था," लेकिन येतो बेहद मामूली है...और वैसेभी मुम्बईके आर्किटेक्ट अपनीही चलाते हैं...और मुझे तो ये सुंदर लग रहा है...यहाँ पे रेलिंग आ जायेगी...एक "विला" की तरहसे लगेगा..."

उस घरकी "हाउस warming" के समारोहमे तो मै नही जा पायी..लेकिन उसी दिन, उसकी माँ, जो एक कैंसर की मरीज़ थी, स्प्लिट लेवल के कारण बड़ी जोरसे पटकी खाके गिर गयी...और कई जगह हड्डियाँ टूट गयीं...पिताके निधनके बाद, अपनी माँ की देखभाल इसीके ज़िम्मे थी...

इन सब झमेलोंके चलते हमारा विदर्भ मे तबादला हुआ...मेरी बेटी US चली गयी... उसे छोड़ हम हवाई अड्डे से मुम्बई की पुलिस मेसमे लौट रहे थे...... मैंने अपने पतीसे, एक जान पहचानके अफसरको, जो हमें अपने माता पिताका दर्जा देता था, सिर्फ़ इतना फोन करनेके लिए कहा,कि, इस महिलाको कमसे कम तकलीफ ना पोहोंचे, इस बातका ध्यान रखा जाय....( भाई की ह्त्या को लेके या स्कूलके अन्य झमेलों को लेके)....
विदर्भ लौट जानेसे पूर्व मै उसे मिलभी आयी....येभी सच था,की, कई लोग मेरे उस शेहेरसे दूर जानेके इन्तेज़ारमे थे...अपनी खुन्नस निकालनेके लिए...

अपनी अपनी ओरसे हम दोनों हमारी दोस्ती निभाते रहे....लेकिन अबतक येभी सच था,कि, उसपे अपनी दोस्ती, मेरे प्रती, सही मायनेमे साथ खड़े हो, निभानेका प्रसंग आयाही नही था...मुड़ के देखती हूँ,तो लगता है, जैसे मुझे मेरे कुछ अन्य मित्र गण कहते थे, ये बात तो मैनेही करके दिखायी थी...पर मुझे उस बातका ना कोई गुरूर था, ना गिला, ना एहसास...
एहसास तो तब हुआ हुआ, जब उसने कही एक बात मेरे कानों तक पोहोंची...खैर!! अभी उस बातके करीब आनेमे समय है...उसके पूर्व काफ़ी कुछ हुआ...उसके जीवनमे.....हुआ तो मेरेभी, लेकिन उसका प्रभाव मेरी सहेलीपे नही पडा...
हमारे विदर्भ मे रहते, एक और ज़बरदस्त आघात उसपे हुआ......मेरी दख़ल अंदाजी एक तरहसे खतरेसे खाली नही थी.....नाही मैंने की...लेकिन एक मकामपे आके मुझे दख़ल अंदाजी तो नही, लेकिन उसका साथ अवश्य निभाना पडा...और बडीही शिद्दतसे मैंने निभाया....जब आधेसे अधिक शेहेर उससे दूर रहेना चाह रहा था...मैंने खुलेआम उसका साथ निभाया...

क्रमश:

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी कहानियाँ पुस्तिकाओं में आती है क्या, सहेज कर रखने में सुविधा रहेगी, प्लीज़ ज़रूर बताइएगा।

    जवाब देंहटाएं
  2. अब वापस कनाडा आकर समय मिलना शुरु हुआ तो आपके ब्लॉग पर आया. इस बीच प्रयास कर भी नहीं पहुँच पा रहा था, क्षमा चाहूँगा. अब नियमित रहने की कोशिश की जायेगी.

    जवाब देंहटाएं
  3. aaj kal main kai blog par jaa rahi hoon aaj aapke blog par aai kuch kuch samajh paa rahi hoon ki aap kya kahna chaah rahi hai lekin aapke lehan ne utsukata badha di hai fir jaroor aaungi jaldi likhiyega

    जवाब देंहटाएं
  4. shama ji

    main aapki kavitao ki talaash kar raha tha , aajkal aap nahi likh rahi ho kya ....

    bhai , hamen intjaar hai aapki kavitao ka ..

    is lekh ke liye badhai ... kuch kuch ghatnayen haamre jeevn me itne changes la deti hai ki bus poochiye mat..

    aapko badhai

    जवाब देंहटाएं
  5. ek kathakar ,afsananigar ka saral shabdon me 'sama' bandhne ka andaz . aage kee utsukta bhee .
    jaree rakhen . na kah ke bhee bahut kuch kah detee hain aap .

    जवाब देंहटाएं