शनिवार, 2 मई 2009

क्यों होता है ऐसा? ३

जब भी अपनेआपको खोजती हूँ..अपने साथ मेरे अपनों को भी बेनकाब होते देखती हूँ...जबभी झाँकती हूँ अपने अतीतमे, साथ मेरे चेहरेके और कई चेहरोंको आईना दिखा देती हूँ...यकीनन, ये इरादतन नही होता...ज़ाहिर है, उन हालातोंमे, उन लमहोंमे, जोभी मेरे साथ मौजूद रहा होगा, उसका प्रतिबिम्ब साथ मेरे, नज़र आही जायेगा...

उम्र और अनुभव दुनियादारीकी रस्मे सिखाते गए...सिर्फ़ किसीके लिए दुनियादारी सही होती, वही किसी औरके नज़रमे ग़लत साबित होती...इस कश्मोकशने मुझे हमेशा घेरे रखा...

आज वही, जिन्होंने मुझे झूटके पहले पाठ दिए, मुझसे पता नही किस,किस बातकी जवाबदेही माँगते हैं....कुछ तो इस दुनियासे चल बसे हैं...उनके बारेमे तो कुछभी कहना लिखना, ठीक नही होगा...सिर्फ़ गर मेरे कथ्यके सफरमे वो आके खड़े होंगे तो बस, उस एक घडीको छूके निकल पडूँगी...और क्या कहूँ?

आज सीधे उसी बातपे आ जाती हूँ, जिसने मुझे पिछले कुछ सालोंमे कई बार कट्घरेमे खड़ा किया...ऐसा नही,कि मै कट्घरोंसे बाहर थी...लेकिन एक और इलज़ाम, मेरे माथे आ गया......

मै अस्पतालमे भरती थी....कोई परिवारवाला साथ तो नही हो सकता था हरसमय...बेटी अमरीकामे था...बेटा बस तभी, पंजाबसे मुम्बई आ गया था...हर कोई अपने काममे मगन...सभीको अपना काम एहेम लगता...काम तो मैभी करती, लेकिन घरसे, कोई दफ्तर तो नही था...बेहद एकांत रहता..

सरका दर्द बेइंतेहा बढ़ता जा रहा था...और उसका कारण चंद महीनों बाद पता चला...एक डॉक्टर ने ग़लत दावाई दे दी थी...जबकि उसके कंटेंट मुझे रास नही आते थे, ये बात मैंने पहलेही स्पष्ट की थी...लेकिन दवायीका नाम अलग था तो मै तब समझ नही पायी...जब समझमे आया, तबतक हदसे ज़्यादा नुकसान हो चुका था...
ऐसेही एक भयंकर attack के चलते मुझे अस्पतालमे दाखिल करा दिया गया...

मेरे एक अन्य डॉक्टर ने जो दूसरे शेहेरमे रहेते हैं, मुझसे एक टेस्ट करवा लेनेको कहा था...contrast dye test या कुछ ऐसाही नाम था उसका...अस्पतालमे मेरे लगातार कुछ न test चलही रहे थे...अक्सर ऐसे मौकोंपे मै अकेलीही होती...करवा आती test...कई बार तो मुझे ऑपरेशन थिएटर मे जाके पता चलता की,ये अंडर LA कराया जायेगा याG Aके तहेत!
जोभी था...ये टेस्ट्स का तांता बना हुआ था...contrast dye की testkee reportme लिखा था, "संशयास्पद है"...ओपन MRI एकबार फिर करना होगा....पता नही मुझे क्या सूझा...मैंने वो रिपोर्ट छुपा दी....मेरे बेटेको एक रातमे, जब वो मेरे पास अस्पतालमे रुकने आया तो मैंने, बिना सोचे समझे कह दिया," डॉक्टर को लगता है, ब्रेन मे कोई ट्यूमर है.."

सच तो ये थाकि, मै उसका अपनी और ध्यान खींचना चाह रही थी..."उसे सेविंग करनेको कहो", ये बात अपने पतीसे लगातार सुनती जा रही थी...और वो कर नही रहा था...मनमे अजीब, अजीब ख्याल आते थे..जो अपना मन सोचता है,वो शायद दुश्मनभी नही सोचता...कहाँ खर्च कर रहा है ये जो सेविंग हो नही रही...? रहना खाना, सबतो फ्री था...हमारे साथ रह रहा था...

उसने जैसेही ये बात सूनी, वो बेहद गंभीर हो गया..लेकिन मेरा एक प्लान था...मेरे ओपन MRI टेस्टके होतेही मै सबकुछ नॉर्मल है, कह देनेवाली थी....उससे बड़ी इल्तिजा की, के ये बात और किसीसे ना कहना....लेकिन नही...उसने मुझे अल्टीमेटम दिया, कि यातो मै होके कहूँ, अपनी बेटीको या, वो कह देगा...उससे पहले उसने मेरे health issuarance पॉलिसी बनवा ली...मै रोकती रही, कि रिपोर्ट्स आ जाने दे...लेकिन नही...इस बातकी मुझे खुशीभी हुई,कि उसे मेरी कुछ तो चिंता है...खैर...और एक बडीही खुदगर्ज़ बात मेरे मनमे आयी....गर बिटियाको बताती हूँ, तो देखती हूँ, कि क्या वो अमरीका छोड़ अपनी बीमार माके पास आ सकती है? क्या भारतमेही जॉब ले सकती है?

बेटीको मैंने बेह्द्ही सहज भावसे लिखा...येभी कि बस दो दिन हैं, बात साफ़ हो जायेगी...ओपन MRI हो जाने दो...तबतक चिंता मत करो...अपने पिताको तो बिल्कुल मत बताना...उनपे पूरे महाराष्ट्रकी ज़िम्मेदारी है...ऐसा नहीकि, ऐसी पोस्टपे रहे लोगोंके परिवारों मे ऐसी बीमारियाँ ना हुई हो..और दिल तो करता था, कि सहीमे ऐसा कुछ निकले...मर्ज़ का निदान तो हो...अक्सर लोगोंसे यही सुनती," अरे सर दर्द तो है..ठीक हो जायेगा..."
किसे, किसे बताती कि, मुझे जैसा दर्द होता है, उसे जब कोई देख लेता है तभी,उसकी इन्तेहा या पीडा समझ पता है...

लेकिन बिटियाने हर मुमकिन जगह फोन कर दिए...मेरी बेहेनको मालूम पड़ा तो, उसने और मेरी माँ ने छानबीन शुरू कर दी...खैर रिपोर्ट हाथमे आ गए और मैंने सभीको कह दिया,कि भगवानके लिए अब इस बातको पीछे छोडो...एक शंका थी...मैंने उसका अपनी हताशामे फायदा उठाना चाहा...चाहा,कि, परिवार एक सूत्रमे बँधे...चाहे, मुझे कोई छोटी मोटी सर्जरी ही करनी पड़े....

लेकिन ये, बडीही भयंकर भूल हो गयी...मै सबसे औरभी दूर हो गयी...मैंने कैसी हताशामे, अकेलेपनमे, ये निर्णय लिया, मैही जानूँ...कोई स्पष्टीकरण नही....सर आँखोंपे ये इल्जाम ले लिया...हजारों बार माफी माँग ली...

लेकिन वो दिन है और आजका...मुझसे मुडके पूछा जाता है, तुमपे विश्वास कर सकते हैं?

क्या इतने दिनोंकी सच्चाई भूल गए सब? ये भूल गयेकी, जब उन लोगों की सुविधा होती तो ख़ुद भी झूठ कहते और मुझसेभी केहेलवाते..?

यही हुआ असर कि, बद अछा बदनाम बुरा...मैंने अपने बेटेके भले की सोची,कि वो शायद मेरे बहाने सेविंग शुरू कर दे...शायद, कभी कबर अपनी माँ के पास आ बैठे.....वो सब सपने रह गए...बडाही विकृत सत्य सामने आया...जो ताउम्र मेरा पीछा नही छोडेगा...मैंने लोगोंके कितनेही घिनौने असत्य, वोभी मेरे बारेमे भुला दिए हैं..और आगे बढ़ गयी...यही सोचके जिसने असत्य कहा, उसेभीतो पीडा पोहोंची ही होगी....
मुझे क्यों इस एक बातकी माफी नही मिल सकती? इसलिए कि, मैंने शातिर झूठी नही थी...के मुझसे ये उम्मीद नही थी...लेकिन अन्य कितनीही उम्मीदें मैंने चुपचाप पूरी की हैं..उनका कोई मोल नही?
चलिए, इन अदालतोंसे बरी होना मेरी किस्मत नही...

समाप्त।

अगली बार कुछ इस्सेसेभी अधिक विस्मयकारक बरतावोंके बारेमे लिखूँगी...नेकी कर कुएमे दाल...हर समय यही
बात गाँठ बांधके चलना चाहिए...

7 टिप्‍पणियां:

  1. सही ही कहा गया है नेकी कर और दरिया में डाल ...आप अपने विचारों को शब्दों के माध्यम से बहुत खूबसूरती से पेश करती हैं ....बेहतरीन

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  2. asatya kah kar sahanubhuti pana ya apnee taraf dhyan bantaa lena ham sab karte hain . sawaql yahee hai ki halat jo bhee hon , ham asatya bolne ke apradhee naheen ho jate .........fir yaheen se to silsila shuru ho jata hai ki ' bad achcha badnaam bura ! ' sare viswas khatm ho jate hain . ' satymev jayate '

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  3. शमा जी,
    जनता हूँ की आपका दर्द क्या है. यह जहाँ ही मतलबी है. बचपन से मृत्यु तक इस तरह की सीखें मिलती रहती हैं. लेकिन यदि वह ही उल्टा खुद के साथ हो तो बुरा लगता है.
    मैं एक बात कहता हूँ... हम सभी कहते है की राजनेता बड़े भ्रष्ट होते हैं... अपनी सात पीढी के लिए धन जमा कर लेते हैं... लेकिन यदि अपने घर का कोई व्यक्ति राजनीती में हो या पार्टी से जुड़ा हो और केवल सिद्धांतो पर चलता रहे तो हम पूछते है कि राजनीती में रहकर आखिर तुमने किया क्या...

    Thanx for inspiring comments...

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  4. Jee haan..! Sammuji, sahee kehte hain aap...lekin jo maine kaha, wahee to dohraa rahe hain aap..!
    Maine kab apne kruty kee pushtee kee..nahee na? Ye likha ki, kyon aisee kahawate chalan me aatee hain...apne aapko katghareme khada karke...shayad, mai harwaqt yahee chalan rakhtee to abtak, " bad" banke achhee kehlaatee..."badnaam" to duniya naam detee hai...
    Sahanubhooteeke khaatir dhyan nahee batora...wajah to kuchh aurhee thee..jo mai khulke keh nahee sakti..kyonki usme phir ekbaar naa chahte huebhi, kisee aurki or anguli nirdesh hoga...koyi aur benaqaab hoga..jo mai nahee chahtee...lekin her haalme maanti hun, ki jo hua galat hua...gar aap shuruse padhen, to samajh payenge, ki jab seedhee ungaleese ghee nahee nikalta tabhi tadhika prayog karna padta hai..

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  5. humm dost pata nahi par kyon itna saral lakhen maine nahi pada lakinek baat kahna chahta hui....aapka ek ek shabd ek paheli sa lagata hai....aapke lekh pada or sath hi jo comment aapne mere blog par chhoda wo pada ....bas yahi kahunga aapne sab ke liye kuch na kuch kiya but aapne liye shayad ....???? waise tension nahi lena ka aapun jaisa DOST hai na...or wo gana to ksuna hoga aapne ....Bhool ja Jo Hua use bhool ja.....Muskura khud yu na de saza......!!! somthing nice song sang by shan....waise achhe bure riston ka naam hi to life hai.....so jiyoo ji bhar ke....!!


    Jai Ho mangalmay hO

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  6. बहुत खूब ! बड़ी सहजता से और सीधे तथा सरल शब्दों में आपने बहुत बड़ा सवाल उठाया है . कि क्यों होता है ऐसा ? जवाब देना आसान नहीं है . क्योंकि दुनिया में तरह तरह के इंसान हैं और हर इंसान के भीतर न जाने कितनी तरह के इंसान मौजूद हैं . पता नहीं इंसान कितनी तरह कि ज़िन्दगी जीता है ? किसी के साथ वो किसी तरह का बर्ताव करता है तो किसी के साथ दूसरी तरह का ! इसीलिए इंसान की फितरत को हम समझ नहीं पाते . हर इंसान अपनी ज़िन्दगी अपनी तरह से जीता है मगर दिक्कत तब शुरू होती है जब वो दूसरों से अपनी तरह से जीने की उम्मीद करता है . लेकिन ये इतना आसान नहीं होता कोई इंसान चाहे भी तो दुसरे इंसान की तरह या उसे खुश करने के लिए जी नहीं सकता . इसका सबसे बड़ा कारण तो यही है की वो इंसान खुद ही किसी एक बात पर नहीं रहता . वो खुद न जाने कितनी ज़िन्दगी जीता रहता है . खैर ये बड़े टेढ़े सवाल हैं और इतनी आसानी से हल नहीं किये जा सकते .
    फिर भी आपने बड़े हलके फुल्के अंदाज़ में इतनी गंभीर बात उठाई है उसके लिए बधाई ! रचना पढ़कर यदि किसी को भी अकाल आ गई या किसी ने भी अपने जीवन को कुछ सरल बनाने की कोशिश की तो यही इसकी सफलता होगी !

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  7. कुछ प्रूफ़ की गलती थी इसलिए टिप्पणी फिर से पोस्ट पर रहा हूँ -
    बहुत खूब ! बड़ी सहजता से और सीधे तथा सरल शब्दों में आपने बहुत बड़ा सवाल उठाया है . कि क्यों होता है ऐसा ? जवाब देना आसान नहीं है . क्योंकि दुनिया में तरह तरह के इंसान हैं और हर इंसान के भीतर न जाने कितनी तरह के इंसान मौजूद हैं . पता नहीं इंसान कितनी तरह की ज़िन्दगी जीता है ? किसी के साथ वो किसी तरह का बर्ताव करता है तो किसी के साथ दूसरी तरह का ! इसीलिए इंसान की फितरत को हम समझ नहीं पाते . हर इंसान अपनी ज़िन्दगी अपनी तरह से जीता है मगर दिक्कत तब शुरू होती है जब वो दूसरों से अपनी तरह से जीने की उम्मीद करता है . लेकिन ये इतना आसान नहीं होता कोई इंसान चाहे भी तो दुसरे इंसान की तरह या उसे खुश करने के लिए जी नहीं सकता . इसका सबसे बड़ा कारण तो यही है कि वो इंसान खुद ही किसी एक बात पर नहीं रहता . वो खुद न जाने कितनी ज़िन्दगी जीता रहता है . खैर ये बड़े टेढ़े सवाल हैं और इतनी आसानी से हल नहीं किये जा सकते .
    फिर भी आपने बड़े हलके फुल्के अंदाज़ में इतनी गंभीर बात उठाई है उसके लिए बधाई ! रचना पढ़कर यदि किसी को भी अकल आ गई या किसी ने भी अपने जीवन को कुछ सरल बनाने की कोशिश की तो यही इसकी सफलता होगी !

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